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फल / निर्मल आनन्द
Kavita Kosh से
सूरज की तेज़ होती
किरणों के साथ
तप रहे हैं
बालू के कण
गर्म हो रही है हवा
बदल र्हे हैं
वृक्षों के चहरों के रंग
और
वक़्त की टहनियों पर
पक रहे हैं फल
फल
जिनके भीतर हैं बीज ।