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फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया / शहराम सर्मदी

फ़क़त
ज़मान ओ मकाँ में
ज़रा सा फ़र्क़ आया

जो एक
मसअला-ए-दर्द था
अभी तक है