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फ़क़त वोट समझे है हर आदमी को / बल्ली सिंह चीमा
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फ़क़त वोट समझे है हर आदमी को ।
व्यवस्था से है ये उज़र आदमी को ।
सुबह-शाम दौड़ा ही दौड़ा फिरता,
मशीनी बनाते नगर आदमी को ।
वो ईश्वर और अल्ला में अन्तर न देखे,
दिखे आदमीयत अगर आदमी को ।
ये दंगे, ये बलवे, ये मरने की ख़बरें,
ये किसकी लगी है नज़र आदमी को ।
ये फ़िरक़ापरस्ती का उन्माद 'बल्ली'
न जाने ले जाए किधर आदमी को ।