भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़क़त वोट समझे है हर आदमी को / बल्ली सिंह चीमा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फ़क़त वोट समझे है हर आदमी को ।
व्यवस्था से है ये उज़र आदमी को ।

सुबह-शाम दौड़ा ही दौड़ा फिरता,
मशीनी बनाते नगर आदमी को ।

वो ईश्वर और अल्ला में अन्तर न देखे,
दिखे आदमीयत अगर आदमी को ।

ये दंगे, ये बलवे, ये मरने की ख़बरें,
ये किसकी लगी है नज़र आदमी को ।

ये फ़िरक़ापरस्ती का उन्माद 'बल्ली'
न जाने ले जाए किधर आदमी को ।