फ़तेहपुर सीकरी से लौटकर / प्रकाश मनु
धन्यवाद भाई भगवान सिंह।
याद रहेगा तुम्हारा हर वक्त कुछ न कुछ कहता
किसी पुरानी खस्ताहाल सुर्री जैसा खिंचा माथा
तुम्हारा उत्साह, तुम्हारी बातें।
पहली बार पत्थरों को जीवित
होकर बोलते सुना तुम्हारी बातों में
पहली बार पत्थरों मेें देखी एक समूची दुनिया
जो इतिहास के लम्बे गलियारे पार कर
सन अट्ठानवे की जून की लपटदार गरमियों
तक चली आई
यहां बादशाह अकबर का आरामकक्ष था साहब
यहां बिछती थी उनकी शैया भीनी-भीनी खुशबूओं वाला
पानी छोड़ा जाता था उसके चौगिर्द इधर वाले ताल से
यहां मंत्रणगृह था यहां घुड़साल यहां अस्पताल
यहां चौसर खेली जाती थी बड़े ही अजीबोगरीब तरीके से
टाप गौर करें साहब,
गोटियों की जगह बैठती थी सजी हुई बांदियां
यहां दीवानेखास थी जहां विराजते थे अगल-बगल बादशाह के
मंत्री सलाहकार अपने-अपने आसन पर
यहां दिवाने आम... आम जनता के लिए
यहां जोधाबाई का महल यहां रूकैया बेगम
यहां मरियम का।
आपको तो मालूम तो होगा बाबू साहब
अकबर की रानियां थीं तीन, तीनों अलग-अलग
धर्मो की
(सबसे बड़ी जोधाबाई, सबसे छोटी मरियम-बिचली रूकैया बेगम)
छीने इलाही चलाया था न उसने बाबू साहब।
इस विशाल खंभे का खूबसूरत आकिटैक्चर देखिए साहब
दंग रह जाएंगे आप
यहां हिंदू, मुसलिम, क्रिश्चियन तीनों की झलक
है एक साथ
यह आलीशान हवामहल एक सौ छयत्तर खंभों वाला
देख रहे हैं न,
यह बादशाह और रानियों की हवाखोरी के
लिए बना था
यहां थी बगल में जोधाबाई की रसोई
यहां खाना बनता था बड़े-बड़े कड़ाहों में....
और इधर शाही डायनिंग रूम.....
पास ही खुशबूदार पानी के फव्वारे चलते थे।
और इधर देखिए, बीरबल का महल
इधर हाथी की समाधि.... ।
आपको बताया था न किस्सा हाथी का बाबू साहब,
जो आया था अकबर की ससुराल से।
भरी सभा में पाक साफ और गुनाहगार का
सही-सही फैसला करता था वही हाथी
बड़ा कमाल का था साहब
क्या खूब था उसका दिमाग,
पैरों से कुचल डालता था देखते ही पापी
अनाचारी को-एक झपाटे से।
यह थी बावड़ी यहां गुस्ल करती थी रानियां
और वह जोधाबाई का मंदिर-जरा गौर फरमाएं
और यहां तुलसी का चौरा हुआ करता था
जी साहब, इसी घेरे में
यहीं हुई थी त्योरस बरस फिल्म की
शूटिंग....
प्यारे भगवान सिंह।
लौटा तो आज कोई हफ्ते भर बाद भी
फतेहपुर सीकरी के पत्थर, खुबसूरत जालियां
बेल-बूटे और पुरानी-धुरानी
खुशबूओं में लिपटी हवाएं तक
क्र रही है रूक-रूककर संवाद
और तुम्हारे मुंह से झर रहे थे जो किस्से
बेशुमार किस्से और आख्यान तब
वे झर रहे हैं अब भी
मेरी स्मृति में......टप-टप फूलों की तरह।
वे कितने सही थे, कितने मृथा....?
कितने प्रतिशत थी उसमें तुम्हारी अपनी
मौलिक कल्पना की उड़ान-
यह दुनिया जो।
मगर मैंने तो तुम्हारी आंखों से देखी थी
जो फतेहपुर सीकरी
आज भी है मेरा वही अंतिम सत्य....
फतेहपुर सीकरी के बारे में।
तीस रुपए... ।
कुल तीस रुपए लेकर एक लम्बे सलाम
के साथ
तुमने समेट लिया अपना तिलिस्म
आगे कभी आएं तो भगवान सिंह को पूछिएगा साहब।
तीस रुपए और एक पूरी छलछलाकर
जी गई जिंदगी
एक पूरा इतिहास आंख के आगे
काल के वक्ष पर वे जो तमाम हैरतअंगेज
चलचित्र देखे मैंने
उनके लिए मेरा झिझकता हुआ सलाम लो भगवान सिंह।