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फ़रिश्ते भी अब होश खोने लगे हैं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
फ़रिश्ते भी अब होश खोने लगे हैं
बगा़वत के सुर तेज होने लगे हैं
उन्हीं से शिकायत हमारी है केवल
जगाकर हमें ख़ुद जो सोने लगे हैं
बहुत प्यार से फूल जिनको दिया था
वही राह में शूल बोने लगे हैं
ख़ता दिल की थी पर ये क्या माजरा है
मेरे अश्क बदनाम होने लगे हैं
ख़ुदा उनके चेहरे पे मुस्कान दे दे
हँसाकर हमें खुद जो रोने लगे हैं
समंदर से बाहर निकल आयी थी रेत
उसे फिर से बादल भिगोने लगे हैं