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फ़र्क़ / नीलाभ
Kavita Kosh से
क्या है जो कुतरता रहता है--
चूहे की तरह
धीरे-धीरे अदृश्य
-- दिनों के रेशे ?
पीले पत्ते गिरते रहते हैं
नि:शब्द एक-दूसरे पर
तह-दर-तह, वर्ष-दर-वर्ष
कि फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाता है
एक को दूसरे से
यह समय है--तुम कहते हो
यह अकर्मण्यता है--मैं कहता हूँ
(रचनाकाल : 1975)