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फ़र्क / विमल कुमार
Kavita Kosh से
इस शहर का एक किला था जिसमें शाम होते ही
बुर्ज के रंग बदल जाते थे
इस शहर में एक बाज़ार था जहाँ कुछ लोग अपने
डैने फ़ड़फ़ड़ाते थे
इस शहर में एक फव्वारा था जिसके आसपास
गुमसुम बेसहारा बच्चे बैठे रहते थे
इस शहर में एक बड़ा-सा तहखाना था जिसमें
जादूगर छिपे रहते थे
इस शहर में एक ऐसी बस्ती थी जहाँ जाने पर
दुनिया में सच और झूठ का फ़र्क समझ में आ जाता था