भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़सादात-६ /गुलज़ार
Kavita Kosh से
शहर में आदमी कोई भी नहीं क़त्ल हुआ,
नाम थे लोगों के जो, क़त्ल हुये.
सर नहीं काटा, किसी ने भी, कहीं पर कोई--
लोगों ने टोपियाँ काटी थीं कि जिनमें सर थे!
और ये बहता हुआ सुर्ख लहू है जो सड़क पर,
ज़बह होती हुई आवाजों की गर्दन से गिरा था