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फ़ाक़ामस्तों के लिए हाथ बढ़ाये रखना / शोभा कुक्कल

 
फ़ाक़ामस्तों के लिए हाथ बढ़ाये रखना
चैन का जाम गरीबों को पिलाए रखना

तोड़ने वाले दिलों को हैं बहुत दुनिया में
आस की शमअ सदा दिल में जलाये रखना

संगे-मरमर का महल हो ये ज़रूरी तो नहीं
आशियाँ जैसा भी हो उसको सजाये रखना

आंधियां तेज़ ग़मों की हों बहुत ही लेकिन
दिल को तूफान की आहट से बचाये रखना

जो मुरादों को किया करता है पूरी सबकी
उसके चरणों में सदा मन को लगाये रखना

कोई शिकवा न शिकायत हो तेरे होंटों पर
दोस्त हो तो मुझे आंखों पे बिठाये रखना

वो कहीं आ के पलट जाये न मेरे दर से
मुझको इन नींद के झोंकों से जगाये रखना

गो कि नाज़ुक है रिश्तों के धागे लेकिन
आखिरी सांस तलक इनको बनाए रखना

एक सौ आठ है जो मन मेरे काहन के
चाहती हूँ मैं उन्हें दिल में बसाये रखना