भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़िक्रे-अज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए / रज़्म रदौलवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


फ़िक्रे-आज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए।
दिल से दिल तक बर्क़े-खुद्दारी को जौलाँ कीजिए॥

दामने-गुल में फ़रोज़ां कीजिए आतश-कदा।
आग के शोलों से तरतीबे-गुलिस्ताँ कीजिए।

यह सितम हाय मुसलसल, यह जफ़ाए-मुत्तसिल।
लाइए किसकी ज़बाँ जो शुक्रे-अहसाँ कीजिए॥

हैरते-ग़म ता-कुजा, ज़ब्ते-मुहब्बत ता-बके।
‘रज़्म’ उठिए अब सकूने-ग़म को तूफ़ाँ कीजिए॥