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फ़िक्रे-अज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए / रज़्म रदौलवी
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फ़िक्रे-आज़ादी को ता-अहसास इमकाँ कीजिए।
दिल से दिल तक बर्क़े-खुद्दारी को जौलाँ कीजिए॥
दामने-गुल में फ़रोज़ां कीजिए आतश-कदा।
आग के शोलों से तरतीबे-गुलिस्ताँ कीजिए।
यह सितम हाय मुसलसल, यह जफ़ाए-मुत्तसिल।
लाइए किसकी ज़बाँ जो शुक्रे-अहसाँ कीजिए॥
हैरते-ग़म ता-कुजा, ज़ब्ते-मुहब्बत ता-बके।
‘रज़्म’ उठिए अब सकूने-ग़म को तूफ़ाँ कीजिए॥