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फ़िक्र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है / नासिर काज़मी

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फ़िक्र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है
ख़ौफ़-ए-बे-मेहरी-ए-ख़िज़ाँ भी है

ख़ाक भी उड़ रही है रस्तों में
आमद-ए-सुब्ह का समाँ भी है

रंग भी उड़ रहा है फूलों का
ग़ुंचे ग़ुंचे शरर-फ़िशाँ भी है

ओस भी है कहीं कहीं लर्ज़ां
बज़्म-ए-अंजुम धुआँ धुआँ भी है

कुछ तो मौसम भी है ख़याल-अंगेज़
कुछ तबीअत मिरी रवाँ भी है

कुछ तिरा हुस्न भी है होश-रुबा
कुछ मिरी शोख़ी-ए-बयाँ भी है

हर नफ़स शौक़ भी है मंज़िल का
हर क़दम याद-ए-रफ़्तगाँ भी है

वजह-ए-तस्कीं भी है ख़याल उस का
हद से बढ़ जाए तो गिराँ भी है

ज़िंदगी जिस के दम से है 'नासिर'
याद उस की अज़ाब-ए-जाँ भी है