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फ़िल्मों में आत्महत्या / ज्योति शर्मा
Kavita Kosh से
क्या लोग फ़िल्में देखकर आत्महत्या करते है
फ़िल्में देखकर कभी प्यार तो किया नहीं
आत्महत्या क्या करेंगे
जो लोग ऐसा सोचते है वे कितने नादान है प्रभु
इन्हें सदबुद्धि दे
कविताओं से क्या स्त्रियाँ आज़ाद हुई है
या आज़ाद स्त्रियाँ कविताएँ लिखती है
जो सोचते है उनकी कविताओं से क्रांति आएगी
उन्हें सदबुद्धि दे प्रभु
विमर्श से क्या दुनिया बदल जाएगी
विमर्श करके हम सभी औरतों को
घर चले जाना है
आदमी की कमाई रोटी तोड़ने
यह कहकर कि घर चलाना भी तो नौकरी है
अगर घर चलाना नौकरी है
तो मैं किसकी नौकर हूँ प्रभु।