भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम / जिगर मुरादाबादी
Kavita Kosh से
फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम
लिपटे पड़े हैं लज़्ज़ते-दर्दे-निहाँ<ref>आन्तरिक वेदना के आनन्द </ref> से हम
इस दर्ज़ा बेक़रार थे दर्दे-निहाँ से हम
कुछ दूर आगे बढ़ गए उम्रे-रवाँ<ref>गतिशील आयु,जीवन</ref> से हम
ऐ चारासाज़<ref> उपचारक</ref> हालते दर्दे-निहाँ न पूछ
इक राज़ है जो कह नहीं सकते ज़बाँ से हम
बैठे ही बैठे आ गया क्या जाने क्या ख़याल
पहरों लिपट के रोए दिले-नातवाँ <ref>क्षीण, निर्बल हृदय</ref> से हम
शब्दार्थ
<references/>