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फ़ेसबुक स्माइली (ज) / सिद्धेश्वर सिंह

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एक दीवार है अदृश्य
दीवारों को ढहाने के उपक्रम में
खड़ी करती हुई एक और दीवार ।
इसकी छाया में देह हो जाती है विदेह
शरीर हो जाता है अशरीर
बाधक नहीं बनता दिक्काल
सतत आवाजाही की जा सकती है
इस पार से उस पार आर-पार ।

भाषा की काया से इतर और अन्य
कुछ चिप्पियाँ है गोलाकार
जिनमें वास करते हैं हर्ष-विषाद
और ऊभ-चूभ करता है
तरह-तरह का मन-संसार
एक क्रीड़ा है
जिससे उपजता है जादू
एक क्रम है
जिससे टूटता है व्यतिक्रम
एक भ्रम है
जिसमें जारी है यथार्थ का करोबार ।

इस गोलाकार पृथ्वी
और गोल दीखते आकाश के तले
एक दीवार है
जिस चिपकीं कुछ चिप्पियाँ है गोलाकार
दीवार जो है अदृश्य
दीवार जो है दृश्यमान
यह एक दीवार -- जिस पर छिपती उघड़ती है
भीतर की ख़ुशी बाहर का हाहाकार ।

हम मनुज
हम देह
हम मन
हम दीवार !