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फ़ेसबुक / संजय कुंदन

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यह तुम्हारी इच्छाओं का आसमान नहीं
आंकड़ों का समुद्र है

ज्यों ही तुम उतरते हो इसमें
एक नजर तुम्हारे पीछे लग जाती है
जो तैरती रहती है तुम्हारे साथ
जब तुम खोलने लगते हो मन की गांठें
वह चौकन्नी हो जाती है
वह दर्ज करती है तुम्हारी धड़कन
तुम्हारे रक्त में कामनाओं की उछाल
माप लेती है वह

तुम्हें पढ़ लिए जाने के बाद तय होता है
कि तुम्हें किस श्रेणी में रखा जाए
मतलब यह कि तुम किस तरह के इंसान हो
आखिर तुम्हें क्या-क्या बेचा जा सकता है
कैसा जूता, कैसी कमीज
कैसा टीवी और किस तरह की शराब।

बहुत उपयोगी होती है यह जानकारी
सौदागरों के लिए
एक कारोबारी इसे बेच देता है दूसरे व्यापारी को
दूसरा तीसरे को

ऐसी कितनी ही सूचनाएं चाहिए होती हैं
एक तानाशाह को भी
जो हर हाल में जीतना चाहता है
आंकड़ों के खेल ने आसान कर दिया है
उसका काम
तुम उसे करते रहो ना पसंद यहां
वह पैसों की ताकत से नापसंद को बदल देता है पसंद में
वह करोड़ों भाड़े के टिप्पणीकार जुटा सकता है
अपने विचार के पक्ष में
वह वेतन पर, ठेके पर प्रतिक्रियाबाज इकट्ठा कर सकता है
और कह सकता है कि उसे पूरी दुनिया पसंद करती है।