लब बंद हैं साक़ी, मिरी आँखों को पिला दे
वो जाम जो मिन्नतकशे-सह्बा नही होता<ref>1928 में कॉलेज ऑफ़ स्यालकोट की साहित्यिक संस्था ’अख़वानुस्सफ़’ के तर्ही मुशायरे में पढ़ी गई ग़ज़ल का पहला शे’र । ’फ़ैज़’ तब इंटरमीडिएट के विद्यार्थी थे।</ref>
शब्दार्थ
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