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फ़ैसला / नील कमल

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दीवार से टिकाकर पीठ
जब रखता हूँ हाथ अपने सिर पर
मुझे आशीर्वाद देते हैं दुनिया के सारे देवता

लड़ाई की थकान कपूर-सी उड़ जाती है
लड़ाई के दृश्य बदलते हैं परदे पर

सामने होते हैं बुश ब्लेयर वाजपेयी बुद्धदेव
बहुत-बहुत और लोग भी

नहीं होता कोई साथ
पिता भाई माँ बहन दोस्त यार

यह लड़ाई कैकेयी को दिया दशरथ का
कोई वचन नहीं जिसके लिए
चौदह वर्षो का वनवास लेना होगा राम को

यह लड़ाई किसी किशोर राजपुत्र के अकेले
चक्रव्यूह मे घुसने की नियति भी नहीं

यह कोई स्वस्थ विरासत भी तो नहीं
जिसे सौंप दूँगा बेटे को
या सिन्दूर की तरह भर दूँगा
पत्नी की माँग में

इस लड़ाई का कोई फैसला
अब हो ही जाना चाहिए

यह आशीर्वाद की बेला नहीं है
यह सिर पर हाथ रखने का वक़्त नहीं
यह हाथों के सिर से ऊपर उठने का वक़्त है ।