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फाँसी पर टंग गया आकाश / रवीन्द्रनाथ त्यागी
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फाँसी पर टंग गया आकाश
समुद्र अपने ही भँवर में डूब गया
खाइयों में से निकलकर सहसा
वे सब मारने लगे उन्हें
जिन्हें वे जानते तक नहीं थे
पहिले मरा संगीत
फिर मरे, प्रेम, यौवन और रूप
दक्षिण दिशा को घोड़ा फेंकता राजकुमार
और इसके बाद मर गए वे,
सब के सब ख़ुद भी
तोपों के क़ब्रिस्तान में
दफ़्न हो गया बारूद का बूढ़ा जादूगर
वे सब के सब किसलिए मरे थे
इसका पता उन्हें कभी नहीं लगा।