भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फागुन पहु घर हमरो अबाद गे / मैथिली लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

फागुन पहु घर हमरो अबाद गे, करबै हम बिहार गे ना
चैत बैसाख बीतल दुइ फूल लागल अकास
जेठमे रिमझिम पड़ै छै फुहार गे, करबै हम विहार गे ना
अषाढ़ साओन बीतल, दुइ मास बरखा बरसै दिन राति
आनन्दसँ पलंगा पर गद्दा ओछायब गे, करबै हम विहार गे ना
आसिन आशा हम लगौलियै, कातिक किछु नहि केलिऐ
अगहन खेपबै बैसिकऽ दुआरि गे, करबै हम विहार गे ना
पूस सीरक भरायब, माघमे पिया के ओढ़ायब
फागुन छोड़बै अतर गुलाल गे, करबै हम विहार गे ना
पुरि गेलै बारह मास गे, करबै हम विहार गे ना