फागुन फाग बुलाई दिहले, अंग-अंग फुलाई दिहले हे / मास्टर अजीज
फागुन फाग बुलाई दिहले, अंग-अंग फुलाई दिहले हे।
मइया ओढ़ि के वासंती चुनरिया, नगरिया हरसाई गइले हे।।
चइत चनरमा चिढ़ाई गइले, पिया बिन तरसाई गइले हे।
मइया वासी जे भात अरुआई गइले, लरिका छछनाई गइले हे।।
बइठी बइसाख बिखिआई गइले, जेठ अगियाई गइले हे।
मइया खेतवा के तातल भूभूरिया, अगिया लगाई गइले हे।।
आसाढ़ अजब अगराई गइले, बादल बउराई गइले हे।
मइया दादुर झिंगुर झनझनाई गइले, उमस बढ़ाई गइले हे।।
सावन-भादो के अन्हरिया, ना लउके डगरिया नू हे।
मइया भूखवा के बरेला बतिया त, जरेला छतिया नू हे।।
आसिन आस जगाई गइले, कंत काहे बिसराई गइले हे।
मइया गाँवे-गाँवे दुरगा पूजाये लगली, आसरा पूरावे लगली हे।।
कातिक कंत विदेश में, गंगा हम नहाईं कइसे हे।
मइया सोहर सखिया सुनावेली, पिया के लोभवेली हे।।
अगहन-पूस के महीनवाँ, ना छूटेला पसीनवा नू हे।
मइया घरे-घरे उठल सगुनवाँ, आवे लगलें पहुनवा नू हे।।
माघ महीना जे आई गइले, देह ठिठुराई गइले हे।
मइया लुगरिया के गांथत-गुदरिया, उमरिया ओराइ गइले हे।।
‘मास्टर अजीज’ इहो गावेलन, गांई के सुनावेलन हे।
मइया जुग-जुग बढ़ो एहवात, त होखे खुशी वरसात नू हे।।