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फागुन में दुनिया हसीन लागै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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फागुन में दुनिया हसीन लागै छै।
तोरा बिना लेकिन मलीन लागै छै।
पोखर कमलनी शृंगार करै छै,
भौंरा दीवाना गुंजार करै छै।
दरवाजा-दरवाजा बाजै छै ढोल,
हमर दरवाजा गमगीन लागै छै।
फागुन में दुनिया हसीन लागै छै।
तोरा बिना लेकिन मलीन लागै छै।
साँझ होथैं पंछी लौटी केॅ आबै छै
खोताँ में मिली जुली गीत नाद गावै छै।
रानी मधुमक्खी केॅ ठौरे ठिकाने नैं
मामला ई भारी संगीन लागै छै।
फागुन में दुनिया हसीन लागै छै।
तोरा बिना लेकिन मलीन लागै छै।
सुरभित बगीचा में कोयल केॅ तान,
तितली केॅ नर्तन आ मधुकर केॅ गान।
आसन डोलाबै छै फूलौं केॅ वाण
विकट समस्या प्रवीण लागै छै।
फागुन में दुनिया हसीन लागै छै।
तोरा बिना लेकिन मलीन लागै छै।
उतरी के अयलऽ छै धरती पर नंदन वन।
सजीली दुल्हन सन पुलकित मगन
सुन्दर बसन्त केॅ वर्णन अधूरे जी।
जड़ चेतन कण-कण रंगीन लागै छै।
फागुन में दुनिया हसीन लागै छै।
तोरा बिना लेकिन मलीन लागै छै।

25/2/16 सायं पौने सात