भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फागुन में / हरीश निगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल पाने लगी है फागुन में
देह गाने लगी है फागुन में।

सूनी-सूनी उदास खिड़की से
धूप आने लगी है फागुन में।

सीधी सादी सी मखमली बिंदिया
ज़ुल्म ढाने लगी है फागुन में।

क्या करें हम हर एक बंदिश पर
उम्र छाने लगी है फागुन में।

एक भूली-सी मुलाकात हरीश
रंग लाने लगी है फागुन में।