भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फागुन / बैगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बंदानी-बंदानी, बंदानी-बनानी, बंदानी-बंदानी
बंदानी बनोरा झूमे रे।
काहिन काट ढोलकी, काहिन काट डांग, बनोरा झूमे
बीजा काट ढोलकी, सेमहड़ काट डांग, खनोरा झूमे
काँनिक हेलर झूमर, काहिन डांग, बनोरा झूमे
बीरन मालक हेलर झूमर, मरगा झूलक डांग, बनोरा झूमे
कोन धरेय ढोलकी, कोण धरय डांग, बनोरा झोमे
ढोलकार धरय ढोलकी, नचगार धरय डांग, बनोरा झूमे
कोन खेलय हरदी, कौन खेलय गुलाल, बनोरा झूमे
टूरी तो खेलय हरदी, टूरा खेलय गुलाल, बनोरा झूमे

शब्दार्थ – बंदानी=गाने की प्रारम्भिक धुन, बनोरा=जूड़े में लगी माला, डांग=झाल जो मोर पंख से बनाई जाती है जिसे बाँस में बाँधा जाता है।, हेलर=हिलना-डुलना/झूलना, नचकार=नाचने वाला।

फागुन माह में महिलाएँ एक गाँव से दूसरे गाँव नाचने जाती है। उसी समय का यह फागुन गीत है। बैगा महिलाएँ नाचते समय नृत्य क्षृंगार में अपने जूड़ों में बीरन मालाएँ बाँधती हैं। जिससे उनकी सुन्दरता बढ़ जाती है। उसी को लक्ष्य करके गीत की रचना हुई। कौन सी लकड़ी से ढोलक बनाई गई है और कौन सी लकड़ी की डांग (मोरपंख की झाली) बनाई गई है।

बीजा की लकड़ी की ढोलक और सेमल से डांग बनाई है। झूमने (लटकने) वाली बीरनमाला किस चीज से बनाते हैं और किस चीज से डांग यानी झाल बनाई गई है। बीरन घास से बीरन माला बनाते हैं और मोरपंख से झाल बनाई जाती है।

कौन ढोलक बजाता है और कौन डांग को संभालता है। ढोलक बजाने वाला कमर में ढोलक बाँधता है और नाचने वाले हाथ में डांग रखते हैं। कौन हल्दी से होली खेलता है और कौन गुलाल लगाता है। लड़की हल्दी से होली खेलती है और लड़का गुलाल लगाता है। लड़की का पीला रंग और लड़के का गुलाबी रंग होली में छा जाता है।