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फागुन / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
आया फिर
आँगन में
रंग लिए फागुन
टेसू हर डाल पर
फगुआ सुनायें
पात-पात
सुन-सुन के
झूम-झूम जायें
पंछी गुनगुनाने लगे
प्यार भरी धुन
राह तके बालम की
रंग लिए गोरी
छोडूँ ना साजन को
खेलूंगी होरी
बजने बेचैन दिखी
पायल
छुन-छुन
शिकवे सब, भूल चली
मस्तों की टोली
हर दिल को
रिझा रही
रंग भरी बोली
प्रीति में खो जाएँ
आओ
हम-तुम
आया फिर
आँगन में
रंग लिए फागुन