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फाग गीत / 2 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मोगरियां री टोपली बजारां माही चाली रे॥
वाला थारी आंगली झन्नाटे चढ़गी रे,
ढुलगी मोगरियां।
हारे ढुलगी मोगरियां, वालाजी थोड़ी भेजी करजो रे,
ढुलगी मोगरियां।

- प्रेयसी संगरी की टोकरी लेकर बाजार में बेचने के लिए निकली। रास्ते में प्रेमी ने टोकरी को पकड़ा तो टोकरी सिर से गिर गई और संेगरियाँ बिखर गईं। प्रेयसी प्रेमी से कहती है कि संेगरियाँ एकत्रित करने में मेरा सहयोग करो।

एक तो कागदियो लिखने कदली वन में मेलो रे॥
कदली वन रा हातीड़ा विलाड़े लइजो रे, कँवर परणीजे॥
हाँ रे कँवर परणीजे, हाती रा होदे तोरण वांदें रे,
कँवर परणीजे॥

- एक पत्र लिखकर कजली वन में भेजो और कजली वन के हाथी बिलाड़ा (राजस्थान) बुलाओ। उस हाथी पर दीवान साहब बिलाड़ा के कुँवर अपने ब्याह में बैठकर तोरण का स्पर्श करेंगे।