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फाग / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
फागुन का महीना है, मचा है फाग
होली छाक छायी है ; सरस रँग-राग !
बालों में गुछे दाने, सुनहरे खेत
चारों ओर झर-झर झूमते समवेत !
पुरवा प्यार बरसा कर, रही है डोल,
सरसों रूप सरसा कर, खड़ी मुख खोल !
रे, हर गाँव बजते डफ-मँजीरे-ढोल
देते साथ मादक नव सुरीले बोल !
चाँदी की पहन पायल सखी री नाच,
आया मन पिया चंचल सखी री नाच !