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फासलों के बीच प्रेम / प्रतिभा कटियार
Kavita Kosh से
न आवाज़ कोई, न इंतजार
वैसे, इतना बुरा भी नहीं
फासलों के बीच
प्रेम को उगने देना
अनकहे को सुनना,
अनदिखे को देखना
फासलों के बीच भटकना
आवाजों के मोल चुकाने की ताकत
अब नहीं है मुझमें
न शब्दों के जंगल में भटकने की
न ताकत है दूर जाने की
न पास आने की.
बस एक आदत है
सांस लेने की और
तीन अक्षरों की त्रिवेणी
में रच-बस जाने की.
तुम्हारे नाम के वे तीन अक्षर...