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फिर, संवाद कैसा / मोहन सपरा
Kavita Kosh से
सूर्य तो सूर्य है
अंधकार के इतिहास से
एकदम अलग-थलग,
फिर, संवाद कैसा ?
फूल तो फूल है
काँटों के इतिहास से
एकदम अलग-थलग,
फिर, संवाद कैसा ?
आकाश तो आकाश है-
बादलों के इतिहास से
एकदम अलग-थलग
फिर, संवाद कैसा ?
नदी तो नदी है
किनारे के इतिहास से
एकदम अलग-थलग
फिर, संवाद कैसा ?
आदमी तो आदमी है
देवता के इतिहास से
एकदम अलग-थलग
फिर, संवाद कैसा ?