भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर अबीर उड़ा रहा वात / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर अबीर उड़ा रहा वात।
मेहंदीले रंग भरे हाथ॥

झुके झुके नैनों की छांव के तले
गाल हुए मूठभर गुलाल।
टेसू की रंग भरी देह झुक गयी
खिल न सकी रह गया मलाल।

यादों की धुंध लिए साथ।
मेंहदीले रंग भरे हाथ॥

कदमों की आहट धड़कन बढ़ा गयी
सिहर उठा चंपा सा गात।
काँटे से उग आये कंठ में कहीं
अधर हिले कह न सके बात।

कंपित सा तन का जलजात।
मेहंदीले रंग भरे हाथ॥

जीवन का सपना तो हुआ नहीं पूर्ण
थक गये उजास के नयन।
उड़ती तितली बैठी फूल पंखुरी
झूला झुला रही पवन।

मगन हुआ कंचन सा गात।
मेहंदीले रंग भरे हाथ॥