भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर आई दीवाली है / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गली-गली में धूम मची है घर-घर में खुशहाली है।
फिर आई दीवाली भाई फिर आई दीवाली है।

पर्व उजाले का यह पावन।
श्री गणेश-लक्ष्मी का पूजन।
केसर-कुमकुम-रोली-चन्दन।
महक रहा सारा घर-आँगन।
खील-खिलौने और मिठाई अब हर चीज मँगा ली है।
फिर आई दीवाली भाई फिर आई दीवाली है।

दीप जल रहे द्वारे-द्वारे।
लगते कितने प्यारे-प्यारे।
जैसे नीलगगन के तारे।
धरती पर उतरे हैं सारे।
पूरनमासी जैसी लगती रात अमावस वाली है।
फिर आई दीवाली भाई फिर आई दीवाली है।

नाच रही है चरखी फर-फर।
झरते हैं अनार झर-झर-झर।
फुलझड़ियाँ लगती हैं सुंदर।
बम के धूम-धड़ाके जमकर।
सब त्योहारों में दीवाली लगती बहुत निराली है।
फिर आई दीवाली भाई फिर आई दीवाली है।