भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर आई सरकार नई / जय चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
फिर आई सरकार नई
फिर नए मिलेंगे आश्वासन
फिर स्वागत में स्वर्ण मृगों के
नाचो बेटा रामलखन !
उनके आने पर झूमे थे
इनके आने पर झूमो
इनकी-उनकी लिए पालकी
गाँव-गली घर-घर घूमो
उनकी गर्दन की रस्सी से
नपवाओ अपनी गर्दन !
करो न चिन्ता भूख तुम्हारी
आँते अगर मरोड़ रही
बदहाली यदि जनम-जनम का
नाता तुमसे जोड़ रही
ढको आँकड़ों से अपना तन
पेट भरो पीकर भाषण !
ख़ून तुम्हारा पीते रहने को
फिर नए जतन होंगे
लोकतन्त्र की हाँफ रही धरती पर
उनके फन होंगे
राजतिलक है उनके हिस्से
भाग तुम्हारे सियाहरन !