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फिर आशना-अजनबी-सा कोई उदास लम्हा / शीन काफ़ निज़ाम


फिर आशना-अजनबी-सा कोई उदास लम्हा ठहर गया
गिरा जो हाथों से से के तिनका, वो पानी सर से गुजर गया क्या

अगर हवा का उदास झोंका, गली में बैठा हो तो ये पूछो
बहुत दिनों से नजर ना आया, वो किस तरह है, उधर गया क्या

हमें जो पीता था जुरआ-जुरआ, कि जिस को सांसों से हमने सींचा
घना-घना सा था जिसका साया, वो पेड़ अब के बिखर गया क्या

न कोई शब को संवारता है, न कोई दिन का उजालता है
वो आखिरी शहरे-आरजू भी समन्दरों में उतर गया क्या

बुझे दियों को जलाने वाला, मरे हुओं को जिलाने वाला
कही से कोई सदा नही है, वो अपने साये से डर गया क्या

सियाही ओढ़े खड़ी है कब से, कगार पर क्यूं फसीले-शब के
उदास आंखों से देखती है, वो जख्म यादों का भर गया क्या