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फिर कब मिलोगे? / शमशाद इलाही अंसारी
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					कितना कठिन 
भावनाओं को
शब्दों में बाँध पाना
नियन्त्रित करना हृदय को
किसी प्रिय के विदाई बेला पर।
विवश होकर उसे अपने नेत्रों से
ओझल होते हुए देखना
फ़िर स्मृति पटल पर
उससे ख़ामोश मुलाकात
मात्र एक प्रश्न लिए
फ़िर कब मिलोगे?
रचनाकाल : 03.10.1987
	
	