फिर कसम खायी है दिल ने प्यार की
फिर वही हसरत तेरे दीदार की
फिर वही जुल्मों सितम का दौर है
हो रहीं बातें वही बेकार की
मुन्तज़िर बेचैनियाँ हैं चैन की
और चाहत है तेरे एतबार की
है रगों में इश्क़ गर्दिश कर रहा
दिल में है तस्वीर मेरे यार की
है वही आँगन अमन नफ़रत वही
नींव फिर खुदने लगी दीवार की
जब वही मंजिल वही है रास्ता
क्यों खिज़ा की बात या कि बहार की
कौन कहता है न वो होगा फ़ना
बात है ये रब के ही अधिकार की
बात जो मुल्के अदम की कर रहा
क्या कहें उस जीस्त से बेज़ार की
सोचने से कब हुए हैं फैसले
बात क्यों फिर जीत की या हार की