भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर खुद से संवाद हुआ है / राघव शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दिनों के बाद हुआ है
फिर खुद से संवाद हुआ है
फिर से ज्ञात हुआ यह जीवन
प्रभु से मिला प्रसाद हुआ है

मानस के पावन पुष्कर में
भक्ति भाव के कमल खिले हैं
फिर मीरा है हुई दिवानी
सूरा को घनश्याम मिले हैं
ध्रुव ने की है कहीं तपस्या
मन मेरा प्रहलाद हुआ है
फिर खुद से संवाद हुआ है....

कहीं कबीरा ने फिर गायी
जीवन दर्शन की शुभ साखी
घाट घाट पर किया आचमन
रहा न कोई पनघट बाकी
अब जीवन है शान्ति निकेतन
भीतर अनहद नाद हुआ है
फिर खुद से संवाद हुआ है.....

हर कोलाहल शान्त किया है
झंझावातों से टकराया
मोहभंग होने पर फिर से
अर्जुन ने गाण्डीव उठाया
गीता ज्ञान दिया कान्हा ने
मेरा दूर विषाद हुआ है
फिर खुद से संवाद हुआ है