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फिर गणतंत्र दिवस आया / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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रसवंती ऊषा की गागर किरणों ने मधुरस बरसाया।
धरती के आँगन पाहुन सा फिर गणतंत्र दिवस आया॥

वर्षों पहले हमने जिसको
था दत्तक सुत सा गोद लिया।
अग्रजा स्वतंत्रता ने जिसको
नित नवाह्लाद नव मोद दिया।

अंबर ने ममता की बूंदों से जिसका अंतर सरसाया।
धरती के आँगन पाहुन सा फिर गणतंत्र दिवस आया॥

बापू भी देख नहीं पाये
जिसकी वह निश्छल किलकारी।
जिस पर भारत माँ ने अपनी
शत बार मुग्ध ममता वारी।

सागर के निर्मल दर्पण में जिसने चंदा मुख दर्शाया।
धरती के आँगन पाहुन सा फिर गणतंत्र दिवस आया॥

अगणित अनुपम बलिदानों ने
सींची जिसकी नित फुलवारी।
आदर्शों के शुभ सुमनों से
फूली जिस की क्यारी क्यारी।

लहराकर झूम तिरंगा भी जिसका स्वागत कर हर्षाया।
धरती के आँगन पाहुन सा फिर गणतंत्र दिवस आया॥