Last modified on 23 फ़रवरी 2018, at 11:05

फिर जीवन से ठना युद्ध है / गरिमा सक्सेना

इस सूखे में बीज न पनपे
फिर जीवन से ठना युद्ध है

पिॆछली बार मरा था रामू
हल्कू भी झूला फंदे पर
क्या करता इक तो भूखा था
दूजा कर्जा भी था ऊपर
घायल कंधे, मन है व्याकुल
स्वप्न पराजित, समय क्रुद्ध है

सुता किसी की व्याह योग्य है
कहीं बीज का कर्जा भारी
जुआ किसानी हुआ गाँव में
मदद नहीं कोई सरकारी
चिंताओं, विपदाओं का पथ
हुआ कभी भी नहीं रुद्ध है

भूखे बच्चे व्याकुल दिखते
आगे दिखता है अँधियारा
सोच न पाता गलत क्या सही
जब मिलता न कहीं सहारा
ऐसे में जीवन अपना ही
लगता जैसे की विरुद्ध है