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फिर देखने को चाँद-सा चेहरा नहीं मिला / जावेद क़मर
Kavita Kosh से
फिर देखने को चाँद-सा चेहरा नहीं मिला।
दिल जिस से मिल गया वह दुबारा नहीं मिला।
दिल को सुकून देता जो आराम रूह को।
मंज़र कोई निगाहों को ऐसा नहीं मिला।
उन के भी रुख़ पर रंग उदासी के आज हैं।
उन का भी हाल आज तो अच्छा नहीं मिला।
मुझ को तुम्हारे शह्र में अफ़सोस ये रहा।
दुख दर्द कोई बांटने वाला नहीं मिला।
दुनिया से दिल लगा के बङी भूल हो गई।
दुनिया से, कैसे कह दूँ कि धोका नहीं मिला।
तेरा बदल मैं लाऊँ कहाँ से मिरे सनम।
तेरा बदल निगाहों ने ढूँढ़ा नहीं मिला।
क्या दिल की बात कहते सर-ए-अंजुमन 'क़मर' ।
उन की तरफ़ से कोई इशारा नहीं मिला।