फिर बसन्त आया है, केंचुली उतारेंगे साँप
सालाना भूख के कलेजे में, आज दंश मारेंगे साँप — 
     सूद चढ़ी बहियाँ फिर आएँगी
     असल तो रहेगा बकाया ही
     शक़्ल में हमारी बस, सूद-सूद खाएँगी
ओंठ न किसी के भी हिल पाएँ, रह-रह फुफकारेंगे साँप — 
     ये हिसाब साँपों के ज़हर भरे दाँतों का
     निगल रहा है अमृत
     बेटे के बेटे के बेटे की आँतों का
बेटों के बेटे ही नेवले बनेंगे कल कुचल-कुचल मारेंगे साँप —