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फिर बुला भेजा है फूलों ने गुलिस्तानों से / मख़दूम मोहिउद्दीन

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फिर बुला भेजा है फूलों ने गुलिस्तानों से
तुम भी आ जाओ के बातें करें पैमानों से

रुत पलट आएगी, इक आपके आ जाने से
कितने अफ़साने हैं, सुनने हैं जो दीवानों से

तोफ़-ए-बर्गे गुलो बादे बहाराँ<ref>फूल-पत्ते और मदिरा की बहार</ref> लेकर
काफ़िले-इश्क़ के निकले हैं बियाबानों से

बदला-बदला सा नज़र आता है दुनिया का चलन
आपके मिलने से, हम जैसे परेशानों से

हम तो खिलते हुए गुन्चों<ref>कलियाँ</ref> का तबस्सुम<ref>मुस्कान</ref> हैं नदीम<ref>मित्र</ref>
मुस्कुराते हुए टकराते हैं तूफ़ानों से

शब्दार्थ
<references/>