फिर भी तुम्हे गले लगाती हूँ मेरे दोस्त / सुजाता
अभी-अभी कौंधी हूँ  
मेरे बुझने का नज़ारा देखने कोईटंग गया है मीनार पर
मुझे एकदम नही डरना था कही गई  बातों से 
वे बस कही जाती हैं
अचानक सब इस पार या उस पार हो गए  हैं
बीच में उलटे हो गए चींटों की एक पंक्ति बिछ गई है 
हाथ पैर फडफडाती हुई
मुझे इस तिलिस्म को भेदकर निकलना होगा
	
क्योंकि तुम अब भी जज की कुर्सी पर बैठे हो
तुम्हे शर्म नही आती
इसलिए तुम्हारी भाषा में 
अपनी  गवाही देने से मैं इनकार  करती  हूँ 
फिर भी तुम्हे  गले लगाती हूँ मेरे दोस्त 
ठीक कहते हो कि मेरा दिल है घुटनों में   
उम्र के साथ ज़्यादा दुखने लगा  है
तुम्हारे सारे सवाल तुम्हारी तर्जनी पर हैं  
मैंने सब कविताओं में छिपा दिए  हैं
मैंने छिपा दिए सारे पते 
गलत चिट्ठियाँ न पहुँचे मुझ तक
छिपा दी फाइलें सब एक्स-रे  अल्ट्रासाउण्ड की 
सब बिल छिपा दिए दवाओं के 
छिपाती जाती हूँ स्मृतियाँ छोटे हुए कपड़ों की तरह पोटली में
तुममें छिपाने आती रही अकेलापन 
उघड़ गई सपनों में... बीच राह...
पता नहीं उन्हें क्यों पलना था मेरे गर्भ में  
लेकिन मौत के बाद वे शव भी नही बन पाए
तब भी मेरे पास एक सुखी जीवन था, सुनियोजित, सुंदर 
मेरी-गो –राउंड में अपनी एक सुनिश्चित सीट
कैसे तो इस  गोल  चक्कर  में से छिटक गई  हूँ  
पहले  ही  कहा था ज़ोर से मत घुमाना भैया 
मुझे  डर लगता है गोल-गोल घूमने से 
दिल  धुड-धुड  धक-धक
रोमांच नही होता
आँखें  
बंद  करती  हूँ  तो पानी  का  दबाव  है
हवा  के  दबाव  से  ज़्यादा 
अपनी  गहराई  में  खींचता  हुआ
खोलती  हूँ  तो  बाहर  खींचती है कोई ताकत
तुम कहते  हो न जैसे इसे – 
सेंट्रीफ्यूगल  फोर्स!
	
	