फिर लहू बोल रहा है दिल में / नासिर काज़मी
फिर लहू बोल रहा है दिल में
दम-ब-दम कोई सदा है दिल में
ताब लाएंगे न सुनने वाले
आज वो नग़मा छिड़ा है दिल में
हाथ मलते ही रहेंगे गुलंचीं
आज वो फूल खिला है दिल में
दश्त भी देखे चमन भी देखा
कुछ अजब आबो-हवा है दिल में
रंज भी देखे खुशी भी देखी
आज कुछ दर्द नया है दिल में
चश्मे-तर ही नहीं महवे-तस्बीह
खूं भी सरगर्म हुआ है दिल में
फिर किसी याद ने करवट बदली
कोई कांटा सा चुभा है दिल में
फिर किसी ग़म ने पुकारा शायद
कुछ उजाला सा हुआ है दिल में
कहीं चेहरे, कहीं आंखें, कहीं होंट
इक सनमखाना खुला है दिल में
उसे ढूंढा, वो कहीं भी न मिला
वी कहीं भी नहीं या है दिल में
क्यों भटकते फिरे दिल से बाहर
दोस्तो शहर बसा है दिल में
कोई देखे वो दिखाऊं 'नासिर'
वुसअते-अर्जो-समां है दिल में।