भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर वही दिल लाया हूँ / मजरूह सुल्तानपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन्दा परवर थाम लो जिगर बन के प्यार फिर आया हूँ
ख़िदमत में आपके हुज़ूर, फिर वही दिल लाया हूँ

जिस की तड़प से रुख पे तुम्हारे आया निखार गज़B का
जिसके लहू से और भी चमका रंग तुम्हारे लब का
गेसू खुले ज़ंजीर बने
और भी तुम तसवीर बने
आइना दिलदार का
नज़राना प्यार का
फिर वही दिल लाया हूँ ...

मेरी निगाह\-ए\-शौक़ से बचकर यार कहाँ जाओगे
पाँव जहाँ रख दोगे अदा से, दिल को वहीं पाओगे
जाऊँ कहीं ये ख़याल कहाँ
रहूँ जुदा ये मजाल कहाँ
आइना दिलदार का
नज़राना प्यार का
फिर वही दिल लाया हूँ ...