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फिर वही सूरज-ढले / कुमार रवींद्र

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फिर वही सूरज ढले
           परछाइयों के खेल
 
नींद के
चन्दन-वनों में
यात्राएँ रोज़
जादुई सागर-तटों पर
सीपियों की खोज
 
परी द्वीपों पर
        भले अमराइयों के खेल
 
फूलवाली गली में
फिर खुशबुओं से भेंट
नशे-डूबे जंगलों में
धूप के आखेट
 
रात पेड़ों के तले
       तनहाइयों के खेल
 
एक पतझर के शहर में
पत्तियों के साथ
दिन रहे झरते
उन्हें चुपके उठाते हाथ
 
और चेहरों पर चले
       हैं झाइयों के खेल