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फिर समय के कृष्ण ने गीता सुनाइ्र है / उर्मिल सत्यभूषण
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फिर समय के कृष्ण ने गीता सुनाइ्र है
अर्जुनों को ज्ञान गंगा छूने आई है
आसमाँ पर चांद तारे धरती पर नर नार
नाचते हैं, रास रसिया ने रचाई है
पनघटों पर गोपियां हैं मंत्रमुग्धा सी
मुरलीधर ने आज फिर मुरली बजाई है
ज्योति रेखा खींच दी धरती गगन के बीच
एक ज्योति दूसरी से मिलने आई है
सांस उर्मिल लग रही ज्यों नाद अनहद का
चेतना ने आँख खोली, मुस्कुराई है।