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फिर से कोई ख़ाब दिखाने वाला है / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
फिर से कोई ख़ाब दिखाने वाला है
ये दिल मुझको फिर बहकाने वाला है
मेरे मन के साज़ पे फिर ऊपर वाला
दर्द का कोई नग़मा गाने वाला है
जाने फिर भी क्यूँ लगता है अपना-सा
उसका हर अन्दाज़ ज़माने वाला है
अरमानों के साए में पलने वाला
अरमानों की ख़ाक उड़ाने वाला है
तू क्या जाने ये मेरा दीवानापन
कितने सालों अश्क बहाने वाला है
जाने मैं कितना पछताने वाला हूँ
जाने वो कितना पछताने वाला है
मेरे हक़ में तेरे मन के अन्दर से
फिर कोई आवाज़ उठाने वाला है
मुझको है मालूम गुज़रता वक़्त अभी
रेत से मेरे नक़्श मिटाने वाला है