भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर से कोई ख़ाब दिखाने वाला है / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर से कोई ख़ाब दिखाने वाला है
ये दिल मुझको फिर बहकाने वाला है

मेरे मन के साज़ पे फिर ऊपर वाला
दर्द का कोई नग़मा गाने वाला है

जाने फिर भी क्यूँ लगता है अपना-सा
उसका हर अन्दाज़ ज़माने वाला है

अरमानों के साए में पलने वाला
अरमानों की ख़ाक उड़ाने वाला है

तू क्या जाने ये मेरा दीवानापन
कितने सालों अश्क बहाने वाला है

जाने मैं कितना पछताने वाला हूँ
जाने वो कितना पछताने वाला है

मेरे हक़ में तेरे मन के अन्दर से
फिर कोई आवाज़ उठाने वाला है

मुझको है मालूम गुज़रता वक़्त अभी
रेत से मेरे नक़्श मिटाने वाला है