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फिर से हसीन वक्त की बस्ती में आ गए / भावना
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फिर से हसीन वक्त की बस्ती में आ गए
मेरे तमाम शेर जो सुर्खी में आ गए
तकदीर सूखे पत्तों की भी क्या है दोस्तों
थोड़े-से चरमराए और मुट्ठी में आ गए
ओझल हुए निगाह से दुनिया के रंजो -गम
मिट्टी से हम बने थे तो मिट्टी में आ गए
गुच्छे तुम्हारी याद के पहलू से टूटकर
महके हुए गुलाब की टहनी में आ गए
काटे गए हैं पेड़ यूँ इतने कि आजकल
जंगल के सारे जीव भी बस्ती में आ गए