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फिर स्मृति में आया कोई / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
भूली-बिसरी कुछ यादों में नयन हो गये सावन-सावन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।
मैंने घंटों अलबम पलटी
देखे अनगिन चित्र पुराने।
पता नहीं कब नींद आ गयी
सपने आकर लगे रिझाने।
फिर सपनों में आया कोई रात हो गयी चन्दन-चन्दन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।
वातावरण सुगन्धित सारा
मेरा हर क्षण लगा महकने।
पंछी मेरी आशाओं का
फुदक-फुदक कर लगा चहकने।
फिर चितवन में आया कोई रूप हो गया दरपन-दरपन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।
दिवस-निशा के महामिलन पर
संध्या ने सिन्दूर बिखेरा।
दोनों एकाकार हो गए
रहा न कुछ भी तेरा-मेरा।
फिर साँसों में आया कोई और हो गया जीवन-जीवन।
फिर स्मृति में आया कोई हृदय हो गया पावन-पावन।