फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब / ग़ालिब
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब
दे बत-ए-मय को दिल-ओे-दस्त-ए-शना मौज-ए-शराब
पूछ मत वजह-ए-सियह-मस्ती-ए-अरबाब-ए-चमन
साया-ए-ताक में होती है हवा मौज-ए-शराब
जो हुआ ग़र्का-ए-मय बख़्त-ए-रसा रखता है
सर से गुज़रे पे भी है बाल-ए-हुआ मौज-ए-शराब
है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर
मौज-ए-हस्ती को करे फ़ैज़-ए-हवा मौज-ए-शराब
चार मौज उठती है तूफ़ान-ए-तरब से हर सृ
मौज-ए-गुल मौज-ए-शफ़क़ मौज-ए-सबा मौज-ए-शराब
जिस कदर रूह-ए-नबाती है जिग तिश्रा-ए-नाज़
दे है तस्कीं ब-दम-ए-आब-ए-बक़ा मौज-ए-शराब
बस-कि दौड़े है रग-ए-ताक में ख़ूँ हो हो कर
शहपर-ए-रंग से है बाल-कुशा मौज-ए-शराब
मौज-ए-गुल से चराग़ाँ है गुज़र-गाह-ए-ख़याल
है तसव्वुर में ज़-बस जल्वा-नुमा मौज-ए-शराब
नश्शे के पर्दे में हैं महव-ए-तमाशा-ए-दिमाग़
बस-कि रखती है सर-ए-नश-ओ-नुमा मौज-ए-शराब
एक आलम पे हैं तूफ़ानी-ए-कैफ़ियत-ए-फ़स्ल
मौज-ए-सब्ज़ा-ए-नौ-ख़ोज़ से ता मौज-ए-शराब
शहर-ए-हंगामा-ए-हस्ती है ज़हे मौसम-ए-गुल
रह-बर-ए-क़तरा-बा-दरिया है ख़ोशा मौज-ए-शराब
होश उड़ते है मिरे जल्वा-ए-गुल देख ‘असद’
फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब