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फिलिप्स का रेडियो / मोहन राणा

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उस पर विविध भारती और समाचार सुनते घर पुराना हो गया

उसके साथ ही ऊँची नीची आवाज़ें कमजोर तरंगें

उसके नॉब भी खो गये पिछली सफेदी में

धूप में गरमाये सेल रात के अँधेरे में एकाएक चुप हो जाते हैं

समाचारों के बीच ,

आंइडहोवन* की खुली सड़कों में तेज हवा से बचते शहर के बीच

खड़ी विशाल फिलिप्स कॉर्पोऱेशन की इमारत को देखता,

जेब्राक्रासिंग पे खड़ा सोचता,

क्या यह फिलिप्स रेडयो है !